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The Martyrdom Day of Sri Guru Arjan Dev
The Martyrdom Day of Sri Guru Arjan Dev is a holiday that commemorates the first Sikh martyr, who was killed in 1606. It is observed primarily in Punjab and also by Sikhs living in other parts of the country on the 24th day of Jeth, the third month in the Sikh calendar. This means it takes place in May or June in the western calendar.
Who is Sri Guru Arjan Dev?
Sri Guru Arjan Dev was born in the region of Goindval, Punjab. He was the youngest son of Bhai Jetha, and Mata Bhani. HI father, Bhai Jetha became Guru Ram Das, the fourth Sikh guru, and his mother was the daughter of Guru Amar Das.
Arjan Dev became the fifth Sikh guru in 1581. His devotion and knowledge was well known and under his leadership, a number advancements were made.
He completed the construction of Darbar Sahib at Amritsar. Guru Arjan Dev also laid the foundation of Harmandir Sahib or the Golden Temple in Amritsar, Punjab. He also designed the concept of the four doors in a gurudwara as he believed that the faith of Sikhism is for the people of all castes and creeds “from whichever direction they come and to whichever direction they bow down”.
He also composed hymns and developed the Adi Granth, using the works of previous Gurus and of other saints. This was the first edition of the Sikh scripture, and later was developed into the Holy Scripture Guru Granth Sahib. Sri Guru Arjan Dev declared that Sikhs should donate a tenth of their earnings to charity, which is followed till today.
Why was Sri Guru Arjan Dev martyred?
Sikh Guru Arjan Dev, was the first guru in the Sikh faith to attain martyrdom in 1606. The reason for his martyrdom or execution was because he refused to obey then Mughal emperor Jehangir. The Mughal ruler of the time was offended by some of the hymns in the Adi Granth as he felt they insulted Islam. He demanded an extremely hefty fine and ordered that some hymns be removed completely.
It was also rumoured that Jahangir’s rebellious son Khusrau followed the teachings of Guru Arjan Dev, and Jahangir was hence jealous and fearful of the Guru's growing influence in Northern India and the spread of Sikhism.
Jehangir, in a fit of rage, demanded that Sikh Guru Arjan Dev convert to Islam. But he refused, after which the Mughal emperor, ordered that Guru Arjan Dev be tortured and executed.
Sri Guru Arjan Dev endured five days of excruciating torture. It is said that he was made to sit on a hot iron plate and hot sand was poured on him. After the fifth day, Guru Arjan Dev was allowed to take a bath in the Ravi river. In watchful eyes of thousands of people who gathered, Guru Arjan Dev entered the river but never came out again.
The Gurudwara Dera Sahib was built at this location in Lahore to pay tribute to where the fifth Sikh guru gave his life. By sacrificing his life and refusing to convert, Guru Arjan Dev protected his dharma, thus attaining the highest level of respect.
How is the Martyrdom day of Sri Guru Arjan Dev commemorated?
In Punjab, the Martyrdom Day of Sri Guru Arjan Dev is observed with the full reading of Guru Granth Sahib. This is followed by a procession carrying the holy book and the distribution of the chabeel, a cold sweet drink. Sikhs also take a holy dip in Harmandir Sahib. Devotees pay their homage by visiting the Golden Temple to mark the martyrdom day of Guru Arjan Dev.
श्री गुरु अर्जन देवी का शहीदी दिवस
श्री गुरु अर्जन देव का शहादत दिवस एक अवकाश है जो 1606 में मारे गए पहले सिख शहीद की याद में मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से पंजाब में और देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले सिखों द्वारा जेठ के 24वें दिन, सिख कैलेंडर में तीसरा महीने में मनाया जाता है। इसका अर्थ है कि यह पश्चिमी कैलेंडर में मई या जून में होता है।
श्री गुरु अर्जन देव कौन हैं?
श्री गुरु अर्जन देव का जन्म पंजाब के गोइंदवाल क्षेत्र में हुआ था। वह भाई जेठा और माता भानी के सबसे छोटे पुत्र थे। उनके पिता, भाई जेठा चौथे सिख गुरु, गुरु राम दास बने, और उनकी माँ गुरु अमर दास की बेटी थीं।
अर्जन देव 1581 में सिखों के पाँचवें गुरु बने। उनकी भक्ति और ज्ञान सर्वविदित था और उनके नेतृत्व में कई प्रगतियाँ हुईं।
उन्होंने अमृतसर में दरबार साहिब का निर्माण पूरा किया। गुरु अर्जन देव ने अमृतसर, पंजाब में हरमंदिर साहिब या स्वर्ण मंदिर की नींव भी रखी। उन्होंने एक गुरुद्वारे में चार दरवाजों की अवधारणा की भी रचना की क्योंकि उनका मानना था कि सिख धर्म की आस्था सभी जातियों और पंथों के लोगों के लिए है "वे जिस भी दिशा से आते हों और जिस दिशा भी में झुकते हों"। उन्होंने पिछले गुरुओं और अन्य संतों के कार्यों का उपयोग करते हुए भजनों की रचना की और आदि ग्रंथ का विकास किया। यह सिख ग्रंथ का पहला संस्करण था, और बाद में इसे पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में विकसित किया गया। श्री गुरु अर्जन देव ने घोषणा की कि सिखों को अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा दान में देना चाहिए, जिसका आज तक पालन किया जाता है।
श्री गुरु अर्जन देव क्यों शहीद हुए?
सिख गुरु अर्जन देव, 1606 में शहादत प्राप्त करने वाले सिख धर्म के पहले गुरु थे। उनकी शहादत या फाँसी का कारण यह था कि उन्होंने तत्कालीन मुगल सम्राट जहाँगीर की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया। उस समय के मुगल शासक आदि ग्रंथ के कुछ भजनों से नाराज थे क्योंकि उन्हें लगा कि उन्होंने इस्लाम का अपमान किया। उन्होंने अत्यधिक भारी जुर्माने की माँग की और आदेश दिया कि कुछ भजनों को पूरी तरह से हटा दिया जाए।
यह भी अफवाह थी कि जहाँगीर के विद्रोही पुत्र खुसरो ने गुरु अर्जन देव की शिक्षाओं का पालन किया, और जहाँगीर उत्तर भारत में गुरु के बढ़ते प्रभाव और सिख धर्म के प्रसार से ईर्ष्यालु और भयभीत था।
जहाँगीर ने गुस्से में आकर माँग की कि सिख गुरु अर्जन देव इस्लाम कबूल करें। लेकिन उन्होंने मना कर दिया, जिसके बाद मुगल सम्राट ने आदेश दिया कि गुरु अर्जन देव को यातना दी जाएँ और उन्हें फाँसी दी जाए।
श्री गुरु अर्जन देव ने पाँच दिनों तक कष्टदायी यातनाएँ सहन कीं। यह कहा जाता है कि उन्हें लोहे की गर्म प्लेट पर बिठाया गया और उन पर गर्म रेत डाली गई। पाँचवें दिन के बाद, गुरु अर्जन देव को रावी नदी में स्नान करने की अनुमति दी गई। जमा हुए हजारों लोगों की चौकस निगाहों में, गुरु अर्जन देव ने नदी में प्रवेश किया, लेकिन फिर कभी बाहर नहीं आए। लाहौर में इस स्थान पर गुरुद्वारा डेरा साहिब को उस स्थान पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए बनाया गया, जहाँ पाँचवें सिख गुरु ने अपना जीवन का बलिदान दिया। अपने जीवन का बलिदान देकर और धर्मांतरण से मना करके, गुरु अर्जन देव ने अपने धर्म की रक्षा की, और इस प्रकार सर्वोच्च स्तर का सम्मान प्राप्त किया।
श्री गुरु अर्जुन देव का शहादत दिवस कैसे मनाया जाता है?
पंजाब में, श्री गुरु अर्जन देव का शहादत दिवस गुरु ग्रंथ साहिब के पूर्ण पाठ के साथ मनाया जाता है। इसके बाद पवित्र ग्रंथ लेकर जुलूस निकाला जाता है और एक शीतल मीठे पेय चाबील का वितरण किया जाता है। सिख भी हरमंदिर साहिब में पवित्र डुबकी लगाते हैं। भक्त गुरु अर्जन देव के शहादत दिवस को सम्मान देने के लिए स्वर्ण मंदिर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।